आदित्य L1 मिशन क्या है, और यह कब लॉन्च होगा? : What is Aditya L1 Mission?

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By Airbornews

Aditya L1 Mission

Aditya L1 Mission

चंद्रमा पर पहुंचने  के बाद इसरो की नजर अब सूर्य पर है, सूर्य के पास भारत पहली बार पहुंचेगा , ISRO  का आदित्य L 1  सूर्य पर 24 घंटे नजर रखेगा या सूर्य का अध्यन करेगा , आइए जानते है इसरो क आदित्य L 1 मिशन क बारे में  

‘आदित्य L1 मिशन’ क्या है? आदित्य L1 मिशन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो द्वारा शुरू किया गया है, और यह पहला अंतरिक्ष मिशन है जो सूर्य का अध्ययन करेगा। इस मिशन का उद्देश्य सूर्य के वातावरण की विस्तारित अध्ययन करना है। ‘आदित्य L1 मिशन’ को अंतरिक्ष में वह स्थान सूर्य के पास स्थापित किया जाएगा जहाँ से सूर्य पर होने वाली घटनाओं का 24 घंटे अध्ययन किया जा सकेगा।

पहले, इस मिशन का नाम ‘आदित्य-1’ था, परंतु फिर इसके दायरे को बढ़ाते हुए, इसे ‘आदित्य L1 मिशन’ नाम दिया गया है।

आदित्य L1 मिशन’ को अंतरिक्ष में कहाँ स्थापित किया जाएगा? 

इस मिशन को अंतरिक्ष में ‘लैग्रेजियन पॉइंट’ पर स्थापित किया जाएगा। लैग्रेजियन पॉइंट को ‘L1 पॉइंट’ भी कहा जाता है, और यह अंतरिक्ष में वह स्थान है जहाँ विभिन्न ग्रहों जैसे सूर्य, पृथ्वी, चंद्रमा, और अन्य ग्रहों के बीच गुरुत्वाकर्षण और प्रतिकर्षण से गुरुत्व का संतुलन होता है।

यह जगह पर गुरुत्वाकर्षण का खिंचाव और कक्षा की गति संतुलित रहती है, इसलिए ‘आदित्य L1 मिशन’ को सूर्य पर नहीं भेजा जा रहा है, बल्कि सूर्य और पृथ्वी के बीच एक ऐसी जगह पर स्थापित किया जाएगा जिसे ‘लैग्रेजियन पॉइंट’ बोला जाता है, और जो पृथ्वी से लगभग 1.5 मिलियन किलोमीटर दूर होगा। ‘L1 पॉइंट’ के चारों ओर प्रभा मंडल कक्षा में रखे गए उपग्रह सूर्य के बिना किसी बधा के लगातार 24 घंटे देख सकते हैं।

पृथ्वी और सूर्य के मध्य कितने ‘लैग्रेजियन पॉइंट’ हैं? 

पृथ्वी और सूर्य के मध्य 5 ‘लैग्रेजियन पॉइंट’ हैं, जिनमें L1, L2, L3, L4, और L5 हैं। जो प्रभामंडल कक्षा में स्थित होते हैं, ‘आदित्य L1 मिशन’ को ‘L1 पॉइंट’ पर स्थापित किया जाएगा, इसलिए इसका नाम ‘आदित्य L1’ रखा गया है।

‘आदित्य L1 मिशन’ में कितने पेलोड (उपकरण) हैं, और इनका क्या काम है? इस मिशन में 7 पेलोड (उपकरण) हैं, जिनके नाम और काम निम्नलिखित हैं:

  • विसिबल इमिशन लाइन कोरोनाग्राफ (VELC): सौर कोरोना और चुंबकीय क्षेत्र की जानकारी प्रदान करेगा।
  • सोलर अल्ट्रावायलेट इमेजिंग टेलीस्कोप (SUIT): सूर्य की Photosphere और Cromosphere के अध्ययन के लिए काम आएगा।
  • आदित्य सोलर विंड प्रैक्टिकल एक्सपेरिमेंट: सौर उत्सर्जन और विचलन का अध्ययन करने के लिए काम आएगा।
  • प्लाज्मा एनालाइजर पैकेज फॉर आदित्य: सौर तूफानों की प्रकृति और विचलन का अध्ययन करने के लिए काम आएगा।
  • सोलर एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर
  • मैग्नेटोमीटर
  • हाई एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर

‘आदित्य L1 मिशन’ का काम क्या होगा?

 इसरो द्वारा इस मिशन के माध्यम से सौर-कोरोना, सूर्य के वातावरण, सौर हवा, कोरोनल मास इंजेक्शन (CME), सौर उत्सर्जन, सौर तूफानों, और सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र का अध्ययन किया जाएगा।

‘आदित्य L1 मिशन’ कब लॉन्च होगा? माना जा रहा है कि भारत का पहला सूर्य मिशन, ‘आदित्य L1 मिशन’, 2 सितंबर 2023 को लॉन्च किया जाएगा। इसरो ने लॉन्चिंग लागत को छोड़कर 378.53 करोड़ रुपए की भारी खर्च से परियोजना को तैयार किया है, और इसे PSLV द्वारा लॉन्च किया जाएगा। लॉन्च के बाद, ‘आदित्य L1 मिशन’ को जो पृथ्वी से लगभग 1.5 मिलियन किलोमीटर दूर ‘L1 पॉइंट’ के आसपास हेलो कक्षा तक पहुँचने में लगभग 109 दिन लगने की उम्मीद है।

कौन-कौन से देश सूर्य पर पहुँचे हैं?

 सूर्य पर अब तक अमेरिका, जर्मनी, और यूरोपीय स्पेस एजेंसी ने कुल मिलाकर 22 मिशन भेजे हैं। इनमें से एक ही मिशन असफल रहा, और दूसरे के साथ कुछ सफलता हासिल की गई। सबसे ज्यादा मिशन अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA ने भेजे हैं।

सूर्य पर सबसे पहले पहुँचने वाला देश कौन था?

 NASA ने पहला सूर्य मिशन ‘पायनियर-5’ को 11 मार्च 1960 को भेजा था। जर्मनी ने भी अपना पहला सूर्य मिशन NASA के साथ मिलकर 1974 में भेजा था। यूरोपीय स्पेस एजेंसी ने भी अपना पहला सूर्य मिशन NASA के साथ मिलकर 1994 में भेजा था। नासा ने सूर्य के आसपास 14 मिशन भेजे हैं, जिनमें से 12 मिशन सूर्य के ऑर्बिटर हैं, और एक मिशन फेल हुआ था।

नासा के साथ यूरोपीय स्पेस एजेंसी (ESA) ने भी चार मिशन किए हैं, जिसमें ‘उलिसीस’ और ‘सोहो’ शामिल हैं। जर्मनी ने नासा के साथ मिलकर दो मिशन किए हैं, जिनमें ‘हेलियोस-ए’ और ‘हेलियोस-बी’ थे। नासा ने 1969 में ‘पायनियर-ई’ स्पेसक्राफ्ट को भेजा था, लेकिन यह अपने तय कक्षा में पहुँच नहीं पाया। नासा और ESA का ‘उलिसीस-3’ मिशन, जो 2008 में भेजा गया था, आंशिक रूप से सफल रहा, लेकिन इसकी बैटरी जल्दी ही खत्म हो गई थी और इसने ट्रांसमिशन नहीं कर पाया।

नासा ने 2001 में ‘जेनेसिस मिशन’ को लॉन्च किया था, जिसका मकसद सूर्य के चारों तरफ चक्कर लगाना और सौर हवाओं का सैंपल लेना था। इसने सौर हवाओं का सैंपल लिया और पृथ्वी पर वापस आया, लेकिन इसका क्रैशलैंडिंग हुआ।

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